Wednesday 22 March 2017

गीतांजली

#आईना

साहित्य उसके कालखण्ड का आईना होता है, और बदलाव का असर उस पर पड़ता है। विचारधारा, शब्दों का चयन व प्रयोग उसके आज पर निर्भर होता है।
अतः कहानी, कविता या कोई रचना उसके आज को प्रदर्शित करती है। और यदि इनमे खुलापन आ रहा है तो वो आज की मांग है । सच को वैसे ही परोसना कोई नग्नता नहीं है।
जो समाज में हो रहा है दिख रहा है भोगा जा रहा है उसको हम शब्दों के भ्रमजाल से नहीं ढक सकते है।

"कविता या साहित्य का स्तर नहीं गिरा है समाज का स्तर गिरा है"

#Geetanjali
22/3/2017

Wednesday 15 March 2017

सवाल

#सवाल

जब भी मैं दहलीज़ पर उसकी रखता हूँ कदम
पाँव में लिपट जाती हैं उसकी सारी इच्छाए
और मांगती हैं हिसाब जो  उसने काटी हैं
कई राते, रोते हुए, मेरे इंतजार में, टकटकी लगाये
उसकी मौन आँखे मांगती हैं, सवालों के जवाब
पर मै निःशब्द हो जाता हूँ, बह जाता हूँ, खो जाता हूँ,
उसकी मासूम इच्छाओं को ओढ़ कर मै सो जाता हूँ।

#Geetanjali
15/3/2017

Monday 6 March 2017

बदलाव

Monday 6 march 2017

कितनी भी बातें कर लो
रह जाती है सिर्फ़ वो बातें
वक़्त-बे-वक़्त जब तब
तुम्हारे अंदर का पौरुष
फन उठा कर लेता है
अंगड़ाई......
दिख जाता है असली रूप
जो तुम छिपा कर भी नहीं
छिपा पाते.....
जता देते हो गाहे-ब-गाहे
मै हूँ नर
और तुम हो नारी
क्योकि.....
स्वाभाव ये तुम को
बचपन से दिया जाता है
पौरुष को दंभ से सींचा
जाता है
समाज की विसंगतियों ने
तुम को पाला है
दिखावा है ये तुम्हार
समानता का दावा
जिससे हमको छला जाता है
फिर क्यों करूँ
स्वीकार
तुम्हारा ये
झूठा बदलाव..........

#Geetanjali
6/3/2017

Wednesday 1 March 2017

काश

***#काश#***

कही से पा जाऊ
संजय की आँखे,
तो रोक लू मै
हर बहते आँसू को,
पलट दू राह
आत्महत्या के लिए
जाते राही की।
दे दू निवाला एक
छोटा ही सही
भूखी सोती
उन आँखो को,
थाम लू
झूठे से ही
हर टूटती आस को
दे दू उम्मीदें
उन डूबती सांसो को।
ढाक दू
नंगे बदन को,
पकड़ लू हाथ
हर खिचते आँचल का
बचा लू
तार तार होती
इज्ज़त को

काश...
कही से पा जाऊ
संजय की आँखे
थाम लू
मानवता को
पाताल में धँसने से
पहले.....

#Geetanjali
21/2/2017

हवस

Wednesday 1 march 2017

#हवस

हवस के है कई चेहरे
घूमते है चेहरा बदल बदल के
कभी गलियों में
कभी महफ़िलों में
करते मासूमो का शिकार
फिर महफ़िलों में टकराये जाम
अदब का चोला पहने
निग़ाहों में हैवानियत पाले
फिर सजाते है अपना दरबार
पहले खेलते है शब्दों का खेल
फिर फेकते है भावनाओं का जाल
जकड कर शिकार
फिर लेते है मजे
जैसे मकड़ी बुने है
अपना जाल
उलझन गहरी है
कौन चोर कौन प्रहरी है
समझ पर है ये भारी
साँठ गाँठ की इस दुनिया में
अय्याशी तख़्त पे विराजी है
नियम क़ायदे इनकी दासी है
मौका पाते ही हो जाता काम तमाम
जैसे मकड़ी चूसे है
अपना शिकार........

#Geetanjali
1/3/2017

महक

#अधूरी

कई जन्मों से अधूरी हूँ
धड़कनों को लिए धूमती हूँ
तेरी तलाश में लोक परलोक घूमती हूँ
जानती हूँ इतना आसान नहीं है तेरा मिलना
इसलिए कई जन्मों को लिए घूमती हूँ
मेरी साँसों में है तेरी साँसों की महक
तेरी महक लिए जंगल जंगल घूमती हूँ
तू मुझ में समाया हुआ है
इस बात से अनजान
मै तेरे लिए दर दर घूमती हूँ
तू हवा में घुला है
मै तुझे जर्रे जर्रे में ढूँढती हूँ।

#Geetanjali
1/3/2017