tag:blogger.com,1999:blog-46443168773580254062024-03-12T17:33:59.375-07:00औरतAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.comBlogger23125truetag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-21236233624334825012018-07-04T11:16:00.001-07:002018-07-04T11:17:06.736-07:00<p dir="ltr">शुचिता का खेल?</p>
<p dir="ltr">कपड़ों से ही नही दिमाग़ और देह से भी स्वत्रंत होने पर ही स्त्री की मुक्ति संभव है।</p>
<p dir="ltr">मिथुन चक्रवर्ती के बेटे का केस, <br>
सुप्रीम कोर्ट का ये विचार कि "स्त्री पुरुष लंबे समय तक साथ रहें तो क्या यह रिश्ता विवाह माना जा सकता है।"</p>
<p dir="ltr">बहुत से लोग असहमत हो सकते है पर मैं इसके समर्थन में हूँ, जो भी करते हो उसकि जवाबदारी भी उसी निडरता से लेना होगा।</p>
<p dir="ltr">किसी के द्वारा बनाये गए संबंध पूर्णतः उसकी ही जवाबदारी है, ना कि किसी ओर की।</p>
<p dir="ltr">कुछ मामलों में फेमिनिज़्म का ढोल पीट कर फिर अबला नारी की भूमिका में आ जाना क्या सही है??</p>
<p dir="ltr">यदि पुरूष फुसलाता है तब तुम्हारा दिमाग़ क्या काम नही करता, उसके फुसलावे में क्यो आती हो।</p>
<p dir="ltr">तुम्हारा अंदरूनी मन ने सहमति दी होगी तभी तो दोनों आगे बढे, नही तो मज़ाल है स्त्री की सहमति के बिना कोई पुरुष उसे छू ले।</p>
<p dir="ltr">प्रेम किया है तो उसे उत्सव की तरह लो, उसे जीओ, ना कि खेल या व्यापार बनाओ।</p>
<p dir="ltr">किसी भी उम्र का प्रेम आकर्षण यदि देहमिलन में परिवर्तित होता है तो उसे सहजता से स्वीकारो, प्रेम की अभिव्यक्ति पर बंधन क्यो?</p>
<p dir="ltr">यहां आ कर सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आख़िर स्त्री दो नावों पर क्यो सवार होना चाह रही है, जब आप ये फैसला करती है कि किसी के साथ समय गुजरना है या रहना है तो क्या ये नही जानती कि अगली स्टेप शारीरिक संबंध होगा, यदि इतनी स्वत्रंत है तो फिर अपनी बात मनवाने या विचार ना मिलने से अलग होने की कन्डीशन में ये अबला का नाटक क्यो? दुष्कर्म का इल्जाम क्यो?<br>
प्रेमी के साथ घूमने, मौज मस्ती करना, शॉपिंग करना आदि करते समय पुरुष के अत्याचार या दुष्कर्म का ख़्याल क्यो नही आता।</p>
<p dir="ltr">जब सेक्स दोनों की मर्जी से हुआ दोनों ने इंजॉय किया फिर अलग होने पर अस्मिता की दुहाई या अबला, दुष्कर्म की दुहाई तुम्हारा दोगलापन है।<br>
शादी का दबाव बना कर क्या भविष्य सुखमय होगा इसकी ग्यारंटी है तुम्हारे पास?<br>
जब तक निभा तब तक सही, प्रेम होगा हो विवाह खुद-ब,खुद होगा। उसके लिए कानून का सहारा क्यो।</p>
<p dir="ltr">ये मान मर्यादा , इज्ज़त का हवाला दे कर किसे धोखा दे रही हो।</p>
<p dir="ltr">स्वत्रंत हो आर्थिक सक्षम हो तो फिर उसी निडरता से शारीरिक संबंध भी बनाओ और नही निभने पर हिम्मत से अलग भी हो जाओ।</p>
<p dir="ltr">किसी ने जबरजस्ती तो नही की थी ना? </p>
<p dir="ltr">सब जानते समझते हुए ही आगे बढ़ी थी ना? </p>
<p dir="ltr">अनचाहे गर्भ से बचने के लिए भी स्टडी की होगी ना?</p>
<p dir="ltr">और यदि इतना सब का सामना करने की हिम्मत नही है तो मत निकलो घर से , मत किसी पुरुष को देख कर रिझो, देह के संगीत को अनसुना करो , ।<br>
नही तो फिर सबसे अच्छा है आप अपने घर मे बैठ कर परंपरा , नियम और बड़ो की इच्छा को स्वीकार करो।</p>
<p dir="ltr">यदि अपनी मर्जी से बाहर निकली हो और देहमिलन कर रही हो तो उसे निडरता से स्वीकार करो, मात्र पुरुष को दोष दे कर सती होने का नाटक मत करो।</p>
<p dir="ltr">परेशानी कब आती है जब स्त्री आपके को तटस्थ ना रख कर , पुरुष पर निर्भर होना शुरू हो जाती है, उसको आगे-आगे काम कर के देती है, अत्यधिक भवनात्मक रूप से कमज़ोर हो जाती है।</p>
<p dir="ltr">(ये पोस्ट सहमति से साथ मे रहने वाले स्त्री पुरुष संबंध पर लिखी गई है, (लिव इन रिलेशन)<br>
जोर जबरजस्ती या बलात्कर को इसमें ना गिने। और ना विवाह को, ये मुद्दे और कभी )</p>
<p dir="ltr">Geet</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-7719281292398017582017-07-19T00:19:00.001-07:002017-07-19T00:19:23.967-07:00औरत<p dir="ltr">#बची_औरत</p>
<p dir="ltr">कुछ खुरची, कुछ छिली<br>
अपने हिस्से में जीती <br>
कोने में लगाये कूड़े जैसी<br>
बची औरत.....</p>
<p dir="ltr">शतरंज के दांव पेंच में<br>
बे-मर्जी बिछती....<br>
बुझे चूल्हे की राख़ में<br>
कुछ कुछ धधकती... औरत..<br>
पीठ पर उग आए अनगिनत<br>
कैक्ट्स को ढोती.... ..<br>
क्या सच में बची........? औरत..</p>
<p dir="ltr">माथे पर पड़ी सलवटों में रहती<br>
हर कालखंड में छली जाती<br>
गर्भ से ही भेदभाव सहती<br>
अनचाहे जन्मी...... <br>
क्या सच में है आधुनिक.......? औरत</p>
<p dir="ltr">उपजी फसलों में खरपतवार सी उगती<br>
फटी एड़ियों का इतिहास लिखती<br>
देहरी पर लटकी नज़र बट्टू सी<br>
लाचार, बेबस<br>
बची औरत...........</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
19/7/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-21272909512785714472017-07-06T18:34:00.001-07:002017-07-06T18:34:52.256-07:00तू प्रचंड<p dir="ltr">तू चंड है........<br>
तू प्रचंड है......<br>
तू है वेग धारिणी....<br>
तू है धरा विशाल......<br>
गगन से ऊँचा है तेरा भाल<br>
डगमग धरती डोले<br>
जब तू अपना रूप खोले<br>
तू दामिनी<br>
तू गजगामिनी<br>
तू सृष्टि की रचनाकार<br>
पग पग तेरे संघर्ष हजार<br>
आँगन से अंतरिक्ष तक तू है छाई<br>
तू कोमल तुझमे श्रद्धा है अपार<br>
जब जब मानवता ने नारी को मसला<br>
रणचंडी बन तूने शीश उसका कुचला<br>
पौरुष के दंभ में मत कर तू स्त्री का अपमान<br>
नहीं तो.... मिटा दिए जाएंगे तेरे निशान<br>
इतिहास के पन्ने देते है यही गवाही<br>
मर्यादा और धर्म की रक्षा के लिए <br>
हमेशा से तू शस्त्र उठती आई<br>
साहस की है तू मिसाल<br>
इतिहास को तू है रचती<br>
वर्तमान की तू है साक्षी<br>
भविष्य की है तू पहरेदार<br>
रौंधी कुचली मसली जाती<br>
तेरी जात को गाली दी जाती<br>
फिर भी तू हमेशा <br>
मानवता को समर्पित मानी जाती<br>
ऐसा है तेरा रूप विशाल <br>
तेरा आस्तित्व है विकराल<br>
तू पोषक है मानव की<br>
गर्भ में रखती सारा संसार........ </p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
7/7/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-47565324891224887742017-07-04T02:14:00.001-07:002017-07-04T02:14:09.453-07:00मोदी जी.?..<p dir="ltr">सुनो.... मोदी जी... <br>
हम जो है ना स्त्री की जात, <br>
वो जो सदियों से दबाई कुचली जा रही है,<br>
इस डर से की भविष्य में <br>
पितृसत्ता के लिए खतरा ना बन जाये। <br>
तो बात ऐसी है कि...<br>
क्यों ना अब हम <br>
मानवजाति के लिए ही खतरा बन जाये । <br>
हमें पूछे बैगर<br>
हमारी इच्छा के विरुध्द<br>
हमारे नियंत्रण से बाहर<br>
प्रकति ने जो माहवारी हमें <br>
हमारे जन्म के साथ ही #ताबीज़ के रूप में बांध कर दी है,<br>
क्यों ना उसे तोड़ कर ही फेक दिया जाये तो कैसा रहेगा। <br>
क्या है ना....<br>
हम जैसी तुच्छ जात को शोभा नहीं देता है<br>
ये #लक्ज़री_टैक्स<br>
क्या बोलते हो मोदी जी क्या करें , <br>
क्यों ना...ये #बच्चेदानी ही निकाल कर फेंक दी जाये ?<br>
ना रहेगी बच्चेदानी ना देना होगा लक्ज़री टैक्स!!</p>
<p dir="ltr">#माहवारी_नियंत्रण_में_होती_तो_शायद_फिर_हम_साल_में_एक_ही_बार_लक्ज़री_टैक्स_देते।</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-6717933332473040962017-06-29T00:27:00.001-07:002017-06-29T00:27:39.712-07:00Geetanjali<p dir="ltr">#चालीस_पार</p>
<p dir="ltr">सुनो....प्रिये..... क्या संभव है<br>
फिर से तुमसे प्यार करना<br>
वो रात औ दिन को जीना<br>
माना, अब वो खिंचाव ना<br>
होगा मेरे अंदर, जो तुम्हे<br>
बांधे रखता था पल पल<br>
प्यार की गलिओं से निकल, अब भटक रही हूँ<br>
गृहस्थी की गलिओं में।<br>
याद आता है, तुम्हारा वो शरारत से देखना<br>
देख कर मुस्काना, कनखियों से इशारा कर<br>
बात बात पर छेड़ना<br>
सिहर जाती थी मैं अंदर तक...<br>
फिर से करना चाहती हूँ तुम से प्यार<br>
क्या हुआ जो हम तुम ही गये चालीस पार....<br>
मेरे प्यार मतलब नहीं है, मात्र सहवास<br>
तुम्हे सामने बैठा कर निहारना चाहती हूँ<br>
घंटो बाते करते रहना चाहती हूं<br>
रूठते , मनाते हुये, फिर से<br>
देखना चाहती हूँ, तुमको हँसते हुए।<br>
जीना चाहती हूँ तुम में,<br>
तुम को जीते हुए।<br>
ये आवाज़ की तल्ख़ी<br>
जिम्मेदारियों से है,<br>
उलझे बाल, सब की तिमारदारियो से है<br>
इससे तुम ना यू नजरे चुराओ<br>
है आकर्षण आज भी, जो जागा था<br>
पहली बार तुम को देख कर<br>
घर में राशन पानी भरती हूं, <br>
पर आत्मा से रोज भूखी सोती हूँ।<br>
साथ व स्पर्श के लिए बैचेन रहती हूँ<br>
माना, तुम अपने काम में हो मशगुल<br>
व्यस्तता का मतलब नहीं है<br>
लापरवाही, ये मैं जानती हूँ<br>
मुझे चाहिए मात्र तुम्हारा साथ<br>
नोकझोंक औ पहले सी मनुहार<br>
रूठने पर मनाना, न मानने पर<br>
तुम्हार प्रणय निवेदन करना<br>
बहुत याद आता है.....<br>
लौटा दो मुझे फिर से मेरा संसार<br>
आओ....ना.... प्रिये....... <br>
फिर से कर ले हम पहला प्यार<br>
क्या हो गया जो हो गए हम चालीस पार........</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-16487636827420461112017-06-26T03:12:00.001-07:002017-06-26T03:12:51.376-07:00बस्ती<p dir="ltr">#बस्ती</p>
<p dir="ltr">सुनती हूँ मैं, लोगो को ,<br>
उनकी अनगिनत चीखों में<br>
दर्द से भरी, मरणांतक रूपो में<br>
कुरेदती जमीं, ज़मीर ढांक रही है<br>
भाई भाई की कब्र काट रही हैं<br>
रिश्तों की सीलन बढ़ती जा रही है<br>
है ....कुछ तो तुझ में और मुझ में<br>
जो सबको दरिंदा बना रही है<br>
छीलते पेड़ो की छाल देख कर<br>
सहम जाती हूं लड़की की <br>
खुलती छाती देख कर<br>
निर्जीवों सी क्यों कर ये हवा हैं<br>
अपनों पर बैठा ये कैसा दरिंदा हैं<br>
ये कैसा बदबूदार बाज़ार खड़ा है<br>
यहाँ हर कोई स्त्री का दलाल खड़ा है<br>
कोख़ का सफर पूरा कर वो बाहर आती<br>
पर पग पग खड़े भेडियों से नहीं बच पाती<br>
बाप,बेटा, माँ, सब क़ातिल खड़े है<br>
कौन गढ़ता है ये समाज, क्या मुर्दे खड़े है<br>
क्यों मजबूरों की इतनी बस्ती हैं<br>
जिस्मो के सौदों में मानवता<br>
क्या इतनी सस्ती है<br>
लहू बहता है अब अश्क़ो से<br>
हर पहचान धुंधली लगती है<br>
कौन अपना, कौन फ़रेबी है<br>
चारों ओर वहशियों की बस्ती है<br>
क्या योनि और छाती इतनी सस्ती हैं।</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAtfEJzfpxK9213dS7JMC0Smax6jVYnvz4YEuZLe_Sy4kgZ9BZsPNP4kWgWHimPPDo1wm8w0muIeJE_VmDHzMgHxB7wQ9ilqp1HZA_DtlAc2vCREpZyNtRnd6QUo7OgoUqCijOdPv1yw/s1600/45415_beautiful_89.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAtfEJzfpxK9213dS7JMC0Smax6jVYnvz4YEuZLe_Sy4kgZ9BZsPNP4kWgWHimPPDo1wm8w0muIeJE_VmDHzMgHxB7wQ9ilqp1HZA_DtlAc2vCREpZyNtRnd6QUo7OgoUqCijOdPv1yw/s640/45415_beautiful_89.jpg"> </a> </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-77277808263313686292017-06-22T23:17:00.001-07:002017-06-22T23:17:15.702-07:00बेहया के फूल<p dir="ltr">#बेहया_के_फूल</p>
<p dir="ltr">कुछ फूलों में होते है बेहया के फूल भी<br>
जो दिखते है हरदम<br>
गांव बाहर<br>
उस गली के कोने से,<br>
जो उपेक्षित है सभ्य समाज में,<br>
बेहया के वो फूल <br>
खो चुके है अपनी खुशबु<br>
अनवरत रगड़ खाते खाते<br>
बदलते सालो में वो बढ़ते गए <br>
बिना खाद पानी के<br>
जैसे बढ़ती है खरपतवार<br>
रोज काली रात में, उस गली की कोख़ में<br>
रोपे जाते है अतृप्त वजूद के तृप्ति के बीज<br>
खिल जाता है एक और बेहया का फूल <br>
हर कोई देखता है उस ओर, पर ठहरता कोई नहीं<br>
वो न देवता के लिए है, ना है किसी शुभता के लिए<br>
वो तो बने है हर रात के लिए<br>
बिना भाव व स्पंदन के बिछ जाने के लिए<br>
रात आती है रोज उस गली में <br>
अपने नंगेपन के साथ ,<br>
उसे और नंगा कर जाती है<br>
बेहया पैदा होते है रात में,<br>
फिर तिल तिल मरते भी है हर रात में<br>
शाम होते ही वो बेहया के फूल खिल जाते है झुंडों में<br>
अपने नए ग्राहक के इंतज़ार में........</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
21/6/2017</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib7b6RmygkN0jslxQ6Q5q6OAus6ZCzeqwLnwQaNs97_PV1rOQlRRhhswij4WKWBMi_slaIEfiyPldPS8eQYrrc_0Dd6DiUSyO0OgaWCLppO4DqUof9aw2BctD23wxptED3CjjdHaR6vw/s1600/65886_beautiful_17.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib7b6RmygkN0jslxQ6Q5q6OAus6ZCzeqwLnwQaNs97_PV1rOQlRRhhswij4WKWBMi_slaIEfiyPldPS8eQYrrc_0Dd6DiUSyO0OgaWCLppO4DqUof9aw2BctD23wxptED3CjjdHaR6vw/s640/65886_beautiful_17.jpg"> </a> </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-27412907355328836682017-05-26T06:27:00.000-07:002017-05-26T09:27:05.294-07:00दामिनी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बहने दो मुझे लहू की तरह<br />
पिघलने दो मुझे चट्टान की तरह<br />
मुझ में धरा की धार है<br />
मुझ में चट्टान सा साहस है<br />
दो आँखे और ज़िस्म से ऊपर हूँ<br />
निःवस्त्र कर दो फिर भी औरत हूँ<br />
कंदराओं में मुझे रहने दो<br />
जटाओं सा मुझे बनने दो<br />
आलौकिक प्रकाश से भर दूंगी<br />
जब जब इस धरा पर जन्म लुंगी<br />
जननी हूँ, अंबर से विशाल हूँ<br />
तेरे भाल का चमकता काल हूँ<br />
तोड़ दो मुझे कई टुकड़ो में<br />
हर टुकड़े में जीवन भर दूंगी<br />
सृजन कर पूरी सृष्टि रच दूंगी<br />
क्या हुआ जो घिर गई हूँ मैं<br />
कुछ पापी आताताइयों से<br />
मुझको अपनी ताकत को परखने दो<br />
दो स्तनों और योनि से नहीं हूँ, मै बंधी<br />
मुझ में है दिव्य तीनो सृष्टि<br />
अंबर पाताल धरा हूँ मैं<br />
हिमालय की अप्सरा हूँ मैं<br />
मेरे दिव्य रूप को सजने दो<br />
मेरे अवचेतन को गढ़ने दो<br />
विशाल भुजाओं से मुझको<br />
संसार का आलिंगन करने दो<br />
हरियाली का चुम्बन लेने दो<br />
हुँ औरत, औरत ही रहने दो....... Geetanjali<br />
<!--Clip_XXXX_170526_185441_460--></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-83712688930089948592017-05-26T05:59:00.001-07:002017-05-26T05:59:54.462-07:00<p dir="ltr">#सिपाही</p>
<p dir="ltr">जवानों के घर में भी, कभी झाँका है<br>
देखा है कभी, क्या वहाँ फांका है<br>
बाते बड़ी बड़ी कहा चूल्हे में जलती है<br>
माँ की छाती बेटे के लिए तरसती है<br>
सीमा पर खड़ा सिपाही सबका बेटा है<br>
क्या कभी तुमने, <br>
उसकी विधवा की आँखों में देखा है<br>
फीता काटता नेता/नायक तुम ने चुना है<br>
क्या बॉडर पर बहाया, उसने खून पसीना है?<br>
सिपाही कभी नहीं बॉडर पर सोता है<br>
तब कही जा कर तुम्हारा सीना चौड़ा होता है<br>
कोई सरकार ने परिवार उसका गोद उठाया है?<br>
विदेशों में केवल लुटती माया है<br>
उस दर्द को पी कर देखो तुम भी<br>
छाती में खंज़र खा के देखो तुम भी<br>
सिपाहियों को दिल में बैठाना जरुरी है<br>
उनके अनाथ बच्चो को अपनाना ज़रूरी है<br>
मत भूलो कि...... ये फ़ौज की ही ताकत है<br>
कि तुम्हारे घरों से मौत की अभी दुरी है..........</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
26/5/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-84792104091670857262017-05-26T05:47:00.000-07:002017-05-26T05:47:15.822-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
हृदय विदारक चित्कार<br />
आज चीर देंगी आसमान<br />
ऐ धरा तू फट जा , नीर बहा<br />
आँसुओ में बहती माँ की लाज बचा<br />
मेरी कोख़ को आज तू दे दे जीवनदान<br />
दो बूंद है मेरी जरुरत, कैसे दे दूँ<br />
इतनी बड़ी कीमत<br />
भटक गई हूं इस मरू में<br />
बिखर रही है सारी आशा<br />
बेरहम मर्दो की दुनिया में<br />
टूट रही है मेरी काया<br />
शतरंज पर बिछी है<br />
बाजारों में बिक रही है<br />
घर की लाज बेचारी<br />
सांसे टूट रही है<br />
आस है अब बाकि<br />
कोई चमत्कार हो<br />
गूंजा से मेरी कोख़ की<br />
किलकारी<br />
सांसो पर ममता है भारी......... Geetanjali<br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-42571513237411109102017-05-26T05:44:00.001-07:002017-05-26T05:44:15.151-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>तू चंड है........</b><br />
<b>तू प्रचंड है......</b><br />
<b>तू है वेग धारिणी....</b><br />
<b>तू है धरा विशाल......</b><br />
<b>गगन से ऊँचा है तेरा भाल</b><br />
<b>डगमग धरती डोले</b><br />
<b>जब तू अपना रूप खोले</b><br />
<b>तू दामिनी</b><br />
<b>तू गजगामिनी</b><br />
<b>तू सृष्टि की रचनाकार</b><br />
<b>पग पग तेरे संघर्ष हजार</b><br />
<b>आँगन से अंतरिक्ष तक तू है छाई</b><br />
<b>तू कोमल तुझमे श्रद्धा है अपार</b><br />
<b>जब जब मानवता ने नारी को मसला</b><br />
<b>रणचंडी बन तूने शीश उसका कुचला</b><br />
<b>पौरुष के दंभ में मत कर तू उसका अपमान</b><br />
<b>नहीं तो.... मिटा दिए जाएंगे तेरे निशान</b><br />
<b>इतिहास के पन्ने देते है यही गवाही</b><br />
<b>मर्यादा और धर्म की रक्षा के लिए </b><br />
<b>हमेशा से तू शस्त्र उठती आई</b><br />
<b>साहस की है तू मिसाल</b><br />
<b>इतिहास को तू है रचती</b><br />
<b>वर्तमान की तू है साक्षी</b><br />
<b>भविष्य की है तू पहरेदार</b><br />
<b>रौंधी कुचली मसली जाती</b><br />
<b>तेरी जात को गाली दी जाती</b><br />
<b>फिर भी तू हमेशा </b><br />
<b>मानवता को समर्पित मानी जाती</b><br />
<b>ऐसा है तेरा रूप विशाल </b><br />
<b>तेरा आस्तित्व है विकराल</b><br />
<b>तू पोषक है मानव की</b><br />
<b>गर्भ में रखती सारा संसार........ Geetanjali</b><br />
<div>
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-85685158897366211232017-05-26T04:36:00.001-07:002017-05-26T04:36:28.680-07:00औरत: हवस<a href="http://geetanjaligirwal11.blogspot.com/2017/03/blog-post_1.html?spref=bl">औरत: हवस</a>: Wednesday 1 march 2017 #हवस हवस के है कई चेहरे घूमते है चेहरा बदल बदल के कभी गलियों में कभी महफ़िलों में करते मासूमो का शिकार फिर महफ़ि...Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-30915804589202572162017-05-26T04:35:00.001-07:002017-05-26T04:35:36.439-07:00औरत: काश<a href="http://geetanjaligirwal11.blogspot.com/2017/03/blog-post_50.html?spref=bl">औरत: काश</a>: ***#काश#*** कही से पा जाऊ संजय की आँखे, तो रोक लू मै हर बहते आँसू को, पलट दू राह आत्महत्या के लिए जाते राही की। दे दू निवाला एक छोट...Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-60850106848481241932017-05-26T04:34:00.003-07:002017-05-26T04:34:49.877-07:00औरत: #दर्द��तेरे आस्तित्व को मिटाने के बाददर्द की इं...<a href="http://geetanjaligirwal11.blogspot.com/2017/05/geetanjali-552017.html?spref=bl">औरत: #दर्द<br />
��<br />
तेरे आस्तित्व को मिटाने के बाद<br />
दर्द की इं...</a>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-5117999409828368812017-05-26T04:34:00.001-07:002017-05-26T04:34:47.137-07:00औरत: #दर्द��तेरे आस्तित्व को मिटाने के बाददर्द की इं...<a href="http://geetanjaligirwal11.blogspot.com/2017/05/geetanjali-552017.html?spref=bl">औरत: #दर्द<br />
��<br />
तेरे आस्तित्व को मिटाने के बाद<br />
दर्द की इं...</a>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-55241330321354714072017-05-21T09:54:00.001-07:002017-05-21T09:55:09.742-07:00औरत<p dir="ltr">#जात</p>
<p dir="ltr">एक औरत सिर्फ़ एक औरत होती है<br>
ना वो हिन्दू होती है, ना वो मुस्लिम होती है<br>
ना वो सिख होती है, ना वो ईसाई होती है<br>
जब वो चोट खाती है अपनी छाती पर<br>
तब वो चोट जात पर नहीं, औरत की छाती पर लगती है<br>
होता है दर्द एक सा, सभी औरतों का<br>
सिसकती है सभी एक ही तरह<br>
उसमे कोई रंग नहीं होता सियासत का<br>
बच्चा जनने वाली एक औरत ही होती है<br>
जो बनती है औरत से माँ <br>
गुज़रते दर्द को सह कर एक इंसान का बच्चा जनती है<br>
निःशब्द देखती रहती है तब भी<br>
जब बच्चा रंग दिया जाता है<br>
मज़हब और सियासत के रंग में<br>
उसकी कोई जात नहीं होती <br>
उसे बाँट दिया जाता है कई टुकड़ो में,<br>
वो बंटती चली आ रही है सदियों से<br>
और बंटती चली जायेगी अनंत तक<br>
कभी हिन्दू बन कर, कभी मुस्लिम बन कर,<br>
कभी सिख बन कर, तो कभी ईसाई बन कर<br>
सिर मुंडवाने, दूजे घर बैठाने, चिता में जलाने,<br>
तीन तलाकों से जो गुजरती है <br>
वो भी औरत ही होती है<br>
कोठो पर जो बिकती है वो भी औरत ही होती है<br>
बलात्कार का दंश जो सहती है वो औरत ही होती है<br>
इस रंग बदलती दुनिया में,<br>
एक औरत सहती है, मरती है, रहती है,<br>
बनती है और बिगड़ती है<br>
जब एक मर्द अत्याचारी होता है<br>
तो वो मात्रा अत्याचार का चेहरा होता है<br>
ना वो हिन्दू होता है, ना वो मुस्लिम होता है<br>
ना वो सिख होता है, ना वो ईसाई होता है<br>
तब एक मर्द केवल एक मर्द होता है.........<br>
और एक औरत केवल एक औरत होती है.............</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
21/5/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-52563292468666205832017-05-13T10:27:00.001-07:002017-05-13T10:27:39.746-07:00#दर्द
😢
तेरे आस्तित्व को मिटाने के बाद
दर्द की इंतहा पार होने के बाद
कई राते सिसकने के बाद
कई चोट रिसने के बाद
आँखों के आसू सूखे होंगे
घाव पर शायद
कुछ तो मलहम लगे होंगे
आखरी सांसो में जो
दर्द भरी चीखे निकली होगी
उसकी गूंज कही दूर तक
ज़रूर पहुची होगी
हवस के शिकारी
तेरी आत्मा कभी तो रोइ होंगी
इतने लंबे इंतजार के बाद
आखिर निर्भया तू
आज चैन से सोई होगी......
#Geetanjali
5/5/2017Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-19045632817716104422017-03-22T04:23:00.001-07:002017-03-22T04:24:02.195-07:00गीतांजली<p dir="ltr">#आईना</p>
<p dir="ltr">साहित्य उसके कालखण्ड का आईना होता है, और बदलाव का असर उस पर पड़ता है। विचारधारा, शब्दों का चयन व प्रयोग उसके आज पर निर्भर होता है।<br>
अतः कहानी, कविता या कोई रचना उसके आज को प्रदर्शित करती है। और यदि इनमे खुलापन आ रहा है तो वो आज की मांग है । सच को वैसे ही परोसना कोई नग्नता नहीं है।<br>
जो समाज में हो रहा है दिख रहा है भोगा जा रहा है उसको हम शब्दों के भ्रमजाल से नहीं ढक सकते है।</p>
<p dir="ltr">"कविता या साहित्य का स्तर नहीं गिरा है समाज का स्तर गिरा है"</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
22/3/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-20669465556936098522017-03-15T10:45:00.001-07:002017-03-15T10:45:58.768-07:00सवाल<p dir="ltr">#सवाल</p>
<p dir="ltr">जब भी मैं दहलीज़ पर उसकी रखता हूँ कदम<br>
पाँव में लिपट जाती हैं उसकी सारी इच्छाए <br>
और मांगती हैं हिसाब जो  उसने काटी हैं<br>
कई राते, रोते हुए, मेरे इंतजार में, टकटकी लगाये<br>
उसकी मौन आँखे मांगती हैं, सवालों के जवाब<br>
पर मै निःशब्द हो जाता हूँ, बह जाता हूँ, खो जाता हूँ,<br>
उसकी मासूम इच्छाओं को ओढ़ कर मै सो जाता हूँ।</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
15/3/2017</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirimmVYTaAmnG18nt2o9glOe1MFAWaI_IFe0ReSvWX2YUfbMzo_AOUMBrGoCuCohZ_bCaGQa1ZLgkE465h3RkAHiLTj0JzSGve4nHH_vGYWjEjP3YIcCLcGcetOwp_DxmXBTpqHFd_ww/s1600/20170314_124437.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirimmVYTaAmnG18nt2o9glOe1MFAWaI_IFe0ReSvWX2YUfbMzo_AOUMBrGoCuCohZ_bCaGQa1ZLgkE465h3RkAHiLTj0JzSGve4nHH_vGYWjEjP3YIcCLcGcetOwp_DxmXBTpqHFd_ww/s640/20170314_124437.jpg"> </a> </div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-52961635281320936912017-03-06T08:18:00.001-08:002017-03-06T08:18:38.605-08:00बदलाव<p dir="ltr">Monday 6 march 2017</p>
<p dir="ltr">कितनी भी बातें कर लो<br>
रह जाती है सिर्फ़ वो बातें<br>
वक़्त-बे-वक़्त जब तब<br>
तुम्हारे अंदर का पौरुष<br>
फन उठा कर लेता है<br>
अंगड़ाई......<br>
दिख जाता है असली रूप<br>
जो तुम छिपा कर भी नहीं<br>
छिपा पाते.....<br>
जता देते हो गाहे-ब-गाहे<br>
मै हूँ नर<br>
और तुम हो नारी<br>
क्योकि.....<br>
स्वाभाव ये तुम को<br>
बचपन से दिया जाता है<br>
पौरुष को दंभ से सींचा<br>
जाता है<br>
समाज की विसंगतियों ने<br>
तुम को पाला है<br>
दिखावा है ये तुम्हार<br>
समानता का दावा<br>
जिससे हमको छला जाता है<br>
फिर क्यों करूँ<br>
स्वीकार<br>
तुम्हारा ये <br>
झूठा बदलाव..........</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
6/3/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-12406295872636545302017-03-01T10:06:00.001-08:002017-03-01T10:07:18.796-08:00काश<p dir="ltr">***#काश#***</p>
<p dir="ltr">कही से पा जाऊ<br>
संजय की आँखे,<br>
तो रोक लू मै<br>
हर बहते आँसू को,<br>
पलट दू राह<br>
आत्महत्या के लिए<br>
जाते राही की।<br>
दे दू निवाला एक<br>
छोटा ही सही<br>
भूखी सोती<br>
उन आँखो को,<br>
थाम लू<br>
झूठे से ही<br>
हर टूटती आस को<br>
दे दू उम्मीदें<br>
उन डूबती सांसो को।<br>
ढाक दू<br>
नंगे बदन को,<br>
पकड़ लू हाथ<br>
हर खिचते आँचल का<br>
बचा लू<br>
तार तार होती <br>
इज्ज़त को</p>
<p dir="ltr">काश...<br>
कही से पा जाऊ<br>
संजय की आँखे <br>
थाम लू<br>
मानवता को<br>
पाताल में धँसने से <br>
पहले.....</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
21/2/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-10459129890261616652017-03-01T09:41:00.001-08:002017-03-01T09:42:48.761-08:00हवस<p dir="ltr">Wednesday 1 march 2017</p>
<p dir="ltr">#हवस</p>
<p dir="ltr">हवस के है कई चेहरे<br>
घूमते है चेहरा बदल बदल के<br>
कभी गलियों में<br>
कभी महफ़िलों में<br>
करते मासूमो का शिकार<br>
फिर महफ़िलों में टकराये जाम<br>
अदब का चोला पहने<br>
निग़ाहों में हैवानियत पाले<br>
फिर सजाते है अपना दरबार<br>
पहले खेलते है शब्दों का खेल<br>
फिर फेकते है भावनाओं का जाल<br>
जकड कर शिकार<br>
फिर लेते है मजे<br>
जैसे मकड़ी बुने है <br>
अपना जाल<br>
उलझन गहरी है<br>
कौन चोर कौन प्रहरी है<br>
समझ पर है ये भारी<br>
साँठ गाँठ की इस दुनिया में<br>
अय्याशी तख़्त पे विराजी है<br>
नियम क़ायदे इनकी दासी है<br>
मौका पाते ही हो जाता काम तमाम<br>
जैसे मकड़ी चूसे है<br>
अपना शिकार........</p>
<p dir="ltr">#Geetanjali<br>
1/3/2017</p>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4644316877358025406.post-7647615421614911312017-03-01T05:55:00.001-08:002017-03-01T06:41:56.334-08:00महक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#अधूरी<br>
<br>
कई जन्मों से अधूरी हूँ<br>
धड़कनों को लिए धूमती हूँ<br>
तेरी तलाश में लोक परलोक घूमती हूँ<br>
जानती हूँ इतना आसान नहीं है तेरा मिलना<br>
इसलिए कई जन्मों को लिए घूमती हूँ<br>
मेरी साँसों में है तेरी साँसों की महक<br>
तेरी महक लिए जंगल जंगल घूमती हूँ<br>
तू मुझ में समाया हुआ है<br>
इस बात से अनजान<br>
मै तेरे लिए दर दर घूमती हूँ<br>
तू हवा में घुला है<br>
मै तुझे जर्रे जर्रे में ढूँढती हूँ।<br>
<br>
#Geetanjali<br>
1/3/2017</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/03513030514261967574noreply@blogger.com0