#बची_औरत
कुछ खुरची, कुछ छिली
अपने हिस्से में जीती
कोने में लगाये कूड़े जैसी
बची औरत.....
शतरंज के दांव पेंच में
बे-मर्जी बिछती....
बुझे चूल्हे की राख़ में
कुछ कुछ धधकती... औरत..
पीठ पर उग आए अनगिनत
कैक्ट्स को ढोती.... ..
क्या सच में बची........? औरत..
माथे पर पड़ी सलवटों में रहती
हर कालखंड में छली जाती
गर्भ से ही भेदभाव सहती
अनचाहे जन्मी......
क्या सच में है आधुनिक.......? औरत
उपजी फसलों में खरपतवार सी उगती
फटी एड़ियों का इतिहास लिखती
देहरी पर लटकी नज़र बट्टू सी
लाचार, बेबस
बची औरत...........
#Geetanjali
19/7/2017
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