Wednesday 4 July 2018

शुचिता का खेल?

कपड़ों से ही नही दिमाग़ और देह से भी स्वत्रंत होने पर ही स्त्री की मुक्ति संभव है।

मिथुन चक्रवर्ती के बेटे का केस,
सुप्रीम कोर्ट का ये विचार कि "स्त्री पुरुष लंबे समय तक साथ रहें तो क्या यह रिश्ता विवाह माना जा सकता है।"

बहुत से लोग असहमत हो सकते है पर मैं इसके समर्थन में हूँ, जो भी करते हो उसकि जवाबदारी भी उसी निडरता से लेना होगा।

किसी के द्वारा बनाये गए  संबंध पूर्णतः उसकी ही जवाबदारी है, ना कि किसी ओर की।

कुछ मामलों में फेमिनिज़्म का ढोल पीट कर फिर अबला नारी की भूमिका में आ जाना क्या सही है??

यदि पुरूष फुसलाता है तब तुम्हारा दिमाग़ क्या काम नही करता, उसके फुसलावे में क्यो आती हो।

तुम्हारा अंदरूनी मन ने सहमति दी होगी तभी तो दोनों आगे बढे, नही तो मज़ाल है स्त्री की सहमति के बिना कोई पुरुष उसे छू ले।

प्रेम किया है तो उसे उत्सव की तरह लो, उसे जीओ, ना कि खेल या व्यापार बनाओ।

किसी भी उम्र का प्रेम आकर्षण यदि देहमिलन में परिवर्तित होता है तो उसे सहजता से स्वीकारो, प्रेम की अभिव्यक्ति पर बंधन क्यो?

यहां आ कर सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आख़िर स्त्री दो नावों पर क्यो सवार होना चाह रही है, जब आप ये फैसला करती है कि किसी के साथ समय गुजरना है या रहना है तो क्या ये नही जानती कि अगली स्टेप शारीरिक संबंध होगा, यदि इतनी स्वत्रंत है तो फिर अपनी बात मनवाने या विचार ना मिलने से अलग होने की कन्डीशन में ये अबला का नाटक क्यो?  दुष्कर्म का इल्जाम क्यो?
प्रेमी के साथ घूमने, मौज मस्ती करना, शॉपिंग करना आदि करते समय पुरुष के अत्याचार या दुष्कर्म का ख़्याल क्यो नही आता।

जब सेक्स दोनों की मर्जी से हुआ दोनों ने इंजॉय किया फिर अलग होने पर अस्मिता की दुहाई या अबला, दुष्कर्म की दुहाई तुम्हारा दोगलापन है।
शादी का दबाव बना कर क्या भविष्य सुखमय होगा इसकी ग्यारंटी है तुम्हारे पास?
जब तक निभा तब तक सही, प्रेम होगा हो विवाह खुद-ब,खुद होगा। उसके लिए कानून का सहारा क्यो।

ये मान मर्यादा , इज्ज़त का हवाला दे कर किसे धोखा दे रही हो।

स्वत्रंत हो आर्थिक सक्षम हो तो फिर उसी निडरता से शारीरिक संबंध भी बनाओ और नही निभने पर हिम्मत से अलग भी हो जाओ।

किसी ने जबरजस्ती तो नही की थी ना?

सब जानते समझते हुए ही आगे बढ़ी थी ना?

अनचाहे गर्भ से बचने के लिए भी स्टडी की होगी ना?

और यदि इतना सब का सामना करने की हिम्मत नही है तो मत निकलो घर से , मत किसी पुरुष को देख कर रिझो, देह के संगीत को अनसुना करो , ।
नही तो फिर सबसे अच्छा है आप अपने घर मे बैठ कर परंपरा , नियम और बड़ो की इच्छा को स्वीकार करो।

यदि अपनी मर्जी से बाहर निकली हो और  देहमिलन कर रही हो तो उसे निडरता से स्वीकार करो, मात्र पुरुष को दोष दे कर सती होने का नाटक मत करो।

परेशानी कब आती है जब स्त्री आपके को तटस्थ ना रख कर , पुरुष पर निर्भर होना शुरू हो जाती है, उसको आगे-आगे काम कर के देती है, अत्यधिक भवनात्मक रूप से कमज़ोर हो जाती है।

(ये पोस्ट सहमति से साथ मे रहने वाले स्त्री पुरुष संबंध पर लिखी गई है, (लिव इन रिलेशन)
जोर जबरजस्ती या बलात्कर को इसमें ना गिने। और ना  विवाह को, ये मुद्दे और कभी )

Geet

No comments: