Monday 6 march 2017
कितनी भी बातें कर लो
रह जाती है सिर्फ़ वो बातें
वक़्त-बे-वक़्त जब तब
तुम्हारे अंदर का पौरुष
फन उठा कर लेता है
अंगड़ाई......
दिख जाता है असली रूप
जो तुम छिपा कर भी नहीं
छिपा पाते.....
जता देते हो गाहे-ब-गाहे
मै हूँ नर
और तुम हो नारी
क्योकि.....
स्वाभाव ये तुम को
बचपन से दिया जाता है
पौरुष को दंभ से सींचा
जाता है
समाज की विसंगतियों ने
तुम को पाला है
दिखावा है ये तुम्हार
समानता का दावा
जिससे हमको छला जाता है
फिर क्यों करूँ
स्वीकार
तुम्हारा ये
झूठा बदलाव..........
#Geetanjali
6/3/2017
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