पिघलने दो मुझे चट्टान की तरह
मुझ में धरा की धार है
मुझ में चट्टान सा साहस है
दो आँखे और ज़िस्म से ऊपर हूँ
निःवस्त्र कर दो फिर भी औरत हूँ
कंदराओं में मुझे रहने दो
जटाओं सा मुझे बनने दो
आलौकिक प्रकाश से भर दूंगी
जब जब इस धरा पर जन्म लुंगी
जननी हूँ, अंबर से विशाल हूँ
तेरे भाल का चमकता काल हूँ
तोड़ दो मुझे कई टुकड़ो में
हर टुकड़े में जीवन भर दूंगी
सृजन कर पूरी सृष्टि रच दूंगी
क्या हुआ जो घिर गई हूँ मैं
कुछ पापी आताताइयों से
मुझको अपनी ताकत को परखने दो
दो स्तनों और योनि से नहीं हूँ, मै बंधी
मुझ में है दिव्य तीनो सृष्टि
अंबर पाताल धरा हूँ मैं
हिमालय की अप्सरा हूँ मैं
मेरे दिव्य रूप को सजने दो
मेरे अवचेतन को गढ़ने दो
विशाल भुजाओं से मुझको
संसार का आलिंगन करने दो
हरियाली का चुम्बन लेने दो
हुँ औरत, औरत ही रहने दो....... Geetanjali