#बेहया_के_फूल
कुछ फूलों में होते है बेहया के फूल भी
जो दिखते है हरदम
गांव बाहर
उस गली के कोने से,
जो उपेक्षित है सभ्य समाज में,
बेहया के वो फूल
खो चुके है अपनी खुशबु
अनवरत रगड़ खाते खाते
बदलते सालो में वो बढ़ते गए
बिना खाद पानी के
जैसे बढ़ती है खरपतवार
रोज काली रात में, उस गली की कोख़ में
रोपे जाते है अतृप्त वजूद के तृप्ति के बीज
खिल जाता है एक और बेहया का फूल
हर कोई देखता है उस ओर, पर ठहरता कोई नहीं
वो न देवता के लिए है, ना है किसी शुभता के लिए
वो तो बने है हर रात के लिए
बिना भाव व स्पंदन के बिछ जाने के लिए
रात आती है रोज उस गली में
अपने नंगेपन के साथ ,
उसे और नंगा कर जाती है
बेहया पैदा होते है रात में,
फिर तिल तिल मरते भी है हर रात में
शाम होते ही वो बेहया के फूल खिल जाते है झुंडों में
अपने नए ग्राहक के इंतज़ार में........
#Geetanjali
21/6/2017
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